ज़िंदगी से मौत बोली
ज़िंदगी से मौत बोली ख़ाक़ हस्ती एक दिन
जिस्म को रह जाएगी, रूह तरसती एक दिन
मौत ही इक चीज़ है कॉमन सभी इक दोस्तो
देखिये क्या सर बलन्दी और पस्ती एक दिन
पास आने के लिए कुछ तो बहाना चाहिए
बस्ते-बस्ते ही बसेगी दिल की बस्ती एक दिन
रोज़ बनता और बिगड़ता हुस्न है बाज़ार का
दिल से ज़्यादा तो न होगी चीज़ सस्ती एक दिन
मुफ़लिसी है, शाइरी है, और है दीवानगी
“रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन”