ज़िंदगी को ठहरे हुए देखा
जिंदगी को ठहरे हुआ देखा …
कायनात का आज एक हसीन नज़ारा देखा,
बेमिसाल हुस्न आँखों से दो चार हुए देखा।
ये शोख निगाहें ये होंठ और रुखसार की लाली,
चाँद ही को जैसे धरती पर उतरे हुआ देखा।
ये हुस्न, ये अदा और ये मासूमियत चेहरे की,
जन्नत से किसी हूर को जैसे नजर के सामने देखा।
क्या लिखूं तारीफ में उसको अल्फाज नहीं मिलते,
शब्दों को आज हाशिए पर फिसलते हुए देखा।
कारवाँ जिंदगी का ठहरे ना जाने कहाँ जाकर,
मैंने उसके दर पे जिंदगी को ठहरे हुए देखा।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश