ज़िंदगी किस रूप में आओगी !!!
कहीं दूर पेड़ पर चहक रही थी
पवन के साथ कहीं झूम रही थी
गगन को झरोखों से निहार रही थी
ज़िंदगी ज़िंदादिली से मुस्कुरा रही थी
मैंने भी पूछ लिया , इन हसीन वादियों से मेरे घर कब आओगी ?
बोली वो …..
रंग बिरंगी तितली की तरह छू जाऊँगी
भँवरे की तरह कानों में गुनगुनाऊँगी
कब रात का बिछोना बना दूँगी
सितारों को तुम्हारी चादर बना दूँगी
कहीं किसी रूप में तो आ जाऊँगी !
कोमल चाँद की शीतलता बन जाऊँगी
या मचलती हुई उद्दंड लहरों में बहा ले जाऊँगी
बरखा की तरह बरस जाऊँगी
या बादल की तरह बिखर जाऊँगी
कहीं किसी रूप में तो आ जाऊँगी !
रातरानी की ख़ुश्बू सी महकूँगी
या गुलाब के काँटों संग रहना सिखलाऊँगी
बहारों की तरह ख़ुशनुमा बन जाऊँगी
या पतझड़ सम झड़ जाऊँगी
कहीं किसी रूप में तो आ जाऊँगी !
पर हाँ तुम वादा करो मुझसे
हर पल साथ दोगे मेरा
अपना समझ अपना लोगे मुझे
मुस्कुराओगे हर रूप देख कर मेरा