*ज़िंदगी का सफर*
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ज़िंदगी का सफर ,पानी की धार है।
कभी ये फतह है तो कभी ये हार है।
जीना किस तरह है,ये अपने हाथ है,
ज़िंदगी अगर फूल नहीं , तो खार है।
ज़िंदगी हल्की फुल्की शैअ है,मगर,
ये शर्मशार है अगर इस पर भार है।
कोई रस्ता भटक कर जुदा हो जाए,
पर उड़ती रहती पंछियों की डार है।
खुशियां बाजारों में कहां बिकती हैं,
ये दिल में बहता निर्मल आबशार है।
अरे ! जिंदगी जिंदादिली का नाम है,
कोई सुने तो,समझाया लाख बार है।
कोई पूछता था,मुझसे जीवन क्या है?
सबसे प्रेम कर यही जीवन का सार है।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।