ज़िंदगी का दस्तूर
सूरत ,दौलत , शौहरत ,
जब तक हैं उतना ही साथ है ,
वरना साथ का एहसास ,
बस कहने- सुनने की बात है ,
वक्त बदलते मरासिम भी बदल जाते हैं ,
ये तय बात है ,
फ़ितरत कब करवट ले कुछ पता नही चलता ,
इंसा की सीरत कब बदल जाए बस नही चलता ,
ज़िदगी मे कुछ ऐसे मरहले आते हैं,
जब हम तन्हा पड़ जाते हैं ,
गर्दिश में हों सितारे तो अपने भी
साथ छोड़ जाते हैं ,
ज़िंदगी की राह में हमसफ़र तो मिल जाते हैं ,
पर हम-नवा नही मिलता ,
अपनों की ख़ातिर कुर्बानी का
सिला भी नहीं मिलता ,
यही ज़िंदगी का दस्तूर है ,
सोचकर मायूस ना हो ,
अपने अख़लाक पर कायम रह ,
तेरा ज़मीर -ओ- ईमान बुलंद हो ,
हर सांस में इन्सानियत को ज़िंदा रख ,
रवाँ-दवाँ इस गर्दिश के सफ़र मे ,
मसरर्त की भी सहर होगी ,
जब ख़त्म होंगे ये तशद्दुद के दिन ,
ख़िज़ाँ के ये दिन बदलेंगें ,
और हर सम्त फ़िज़ा में बहार होगी।