ज़िंदगी का जंग
बेहतर होता कि मोड़ते जाते कोरा कागज़,
बोझल पलकें न देंगे ज़िंदगी का हर संग!!
यूं लगता है जैसे अधूरा है ज़िंदगी का चेहरा,
बस उतर गया कहीं पर्दे से मोहब्बत का रंग!!
नए रंगों से सजी रहीं ये पलकें भी धीरे-धीरे,
बेरंग ज़िंदगी में फिर लौट आया प्यारा उमंग!!
दिल की धड़कनों से तो थमी नहीं ये ज़िंदगी,
बस सांसों ने यूं जीत लिया ज़िंदगी का जंग!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़