“ज़िंदगी अगर किताब होती”
“ज़िंदगी अगर किताब होती”
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हमारी ज़िंदगी अगर किताब होती;
पन्ने-पन्ने पे लिखी,कई ख्वाब होती।
भूत, भविष्य व वर्तमान, तीनों की;
बातें इसमें , लिखी बेहिसाब होती।
कुछ पन्नों में , दुख-दर्द छिपा होता;
फर्ज़ दिल के कलम से, छपा होता।
निहित होते इसमें, सारे रिश्ते-नाते;
ये किताब,हर शख़्स को खूब भाते।
सुनहरे पन्नों को पलटकर , सबको;
जिंदगी जीने का हुनर , ज्ञात होता।
जीवन रंग भरा,हर दिन खास होता;
फिर निज रिश्तों का,अहसास होता।
सजे दिखते हर्फ़ से, निज अल्फ़ाज़;
पढ़ते सब फिर, ज़िंदगी के हर राज।
नई पीढ़ी को भी,आते फिर हम याद;
ग़र अपनी ज़िंदगी जो होती, किताब।
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स्वरचित सह मौलिक;
……✍️पंकज कर्ण
……….कटिहार।।