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2 May 2024 · 1 min read

ज़िंदगानी सजाते चलो

पत्थरों को हटाते चलो!
ज़िंदगानी सजाते चलो!!

तीरगी खल रही ग़र तुम्हें!
दीप मन के जलाते चलो!!

बिन रुके ही चलाना कलम!
धार इसमें लगाते चलो!!

तल्ख़ लहज़ा मुसलसल यहाँ !
शायराना बनाते चलो !!

बज़्म में तुम मुसाफ़िर सदा!
गीत -ग़जलें सुनाते चलो!!

धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051

Language: Hindi
38 Views

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