ज़ारा बेगम
कहानी -१
जारा बेगम’
विद्या निकेतन विद्यालय (मुंबई) के औडिटोरियम में आज दिनांक १९ जून २०१८ को बहुत बड़ा एवार्ड फंक्शन है | बारहवीं की परीक्षा के परिणाम में जो बच्चे अव्वल आए थे उन्हें आज डिस्ट्रिक्ट ऑफिसर द्वारा इनाम दिया जाना तय हुआ है | यह प्रोग्राम लाइव टेलीकास्ट होना था | सबसे हैरानी की बात यह थी कि जिस बच्चे ने टॉप किया था वह मीडिया और स्कूल वालों के लिए बहुत ही खास था | कोई बनावटी और बेतुकी बातों में उलझा था, तो कोई बड़ी बेसब्री से फंक्शन शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था | मुख्य अतिथि के आते ही प्रोग्राम शुरू हुआ | अतिथि के सम्मान और माँ सरस्वती की वंदना के पश्चात अलग-अलग राज्यों से वे सारे बच्चे आए थे जिन्होंने उत्तम श्रेणी प्राप्त की थी | पुरस्कार एवं सर्टिफ़िकेट का वितरण निचले स्तर से शुरू हुआ | सबसे अंत में ‘परी जारा बेगम’ के नाम की घोषणा हुई तो सभी माता-पिता हैरानी से देखने लगे | मुख्य अतिथि ने अंत में ‘परी जाराबेगम’ से कहा – “इतनी बड़ी सफलता पर तुम तमाम बच्चों को कुछ कहना नहीं चाहोगी ?”
परी ने अभिवादन स्वीकारते हुए माइक हाथ में लिया और कहा – ‘सर आपका शुक्रिया | आज मैं आपको अपनी इस जीत की असली हकदार से मिलवाना चाहूंगी, जिसके बारे में आप सबके लिए जानना ज़रूरी है | चलिए आज मौका मिला है तो आपको मैं आप सभी का ज़्यादा वक़्त न लेते हुए अपनी कहानी सुनाती हूँ |
मैं, मेरी माँ और मेरा भाई यही मेरा परिवार हैं | मेरा नटखट भाई माँ से रोज़ ज़िद पकड़ बैठता और कहता –
“अम्मा तंग आ गया हूँ मैं, रोज़-रोज़ आपको ऐसे लोगों के बीच नाचते हुए देखता हूँ | यह सब मुझे पसंद नहीं | आप चलो ये सब छोड़ो मेरे साथ खेलो |
तो माँ कहती – “नहीं बेटा, अभी मुझे बहुत काम है, जाओ तुम भीतर जाकर परी के साथ खेलो, जाओ दीदी तुम्हें प्यार करेगी और मस्ती भी |” जब वह माँ का आँचल खींचने लगा तो फिरसे माँ रोज़ यही कहती “मुझे शाम की महफिल की तैयारी करनी है |”
मैं यह सब दूसरे कमरे में पर्दे के पीछे खड़ी होकर सब सुनती | आपको पता है मैं रोज़ माँ की दिनचर्या देखती थी | भलीभाँति सब समझती थी कि माँ हम दोनों के भविष्य को सुंदर बनाने के लिए ही तो कर रही है | कभी-कभी मैं असमंजस में पड़ जाती थी कि क्या माँ सही है ? क्या उनका इस तरह से हॉल कमरे को सजाना, इत्र की खुशबू बिखेरना, लोगों के सामने नाच-गाना करना ? खुश होकर जब लोग यूँ नोटों को उड़ाते थे |
तो….छिः ! घिन आ जाती थी मुझे | शाम होते ही हमारा हॉल कमरे की तरफ जाना मना था | हम एक अलग कमरे में बंद कर दिए जाते | माँ हर रोज़ एक चिट्ठी हमारे पलंग पर रख कर जाती और उसमें लिखा होता ‘मेरे प्यारे परी और मुन्ना तुम्हारा मनपसंद खाना बनाया है, खाकर पढ़ाई करना और अपनी स्कूल की तैयारी लगा लेना, माँ जल्दी ही आएगी और माँ जानती है कि वह वक्त नहीं दे पाती सिर्फ और सिर्फ हमारे बेहतर भविष्य के लिए……तुम्हारी माँ |’
यह पढ़कर मेरी आँखों में माँ के लिए प्यार का तूफान उमड़-घुमड़ आता | मैं अपने और मुन्ना के सारे काम सही से करके पलंग पर करवटें बदलती रहती और रात को अक्सर मैं डर जाती थी ये सोचकर कि ‘पिताजी क्यों नहीं आते ? बार-बार मुझे ये सवाल परेशान करता था | कब नींद आती कुछ पता ही न चलता |
सुबह उठकर देखती तो सबकुछ तैयार मिलता आँखों के सामने माँ होती | एकदम मेरा चेहरा खिल जाता, वह हमें गलेलगाती और हमें गोल-गोल घुमाती,खुशी-खुशी हम दोनों स्कूल जाते |
कई बार मुझे स्कूल में भी यही ख्याल आता कि ‘अपने अस्तित्व की नुमाइश करती मेरी माँ दूसरों की तरह एक अच्छे घर में और मेरे दोस्तों की माँ की तरह क्यों नहीं रहती ? सबके पिताजी आते हैं स्कूल पीटीएम में ? पर…. हमारी माँ तो दोनों ही रोल अदा कर रही है | हमारी देखभाल, घर-बाहर, उसकी आँखों में हमारे सुंदर भविष्य के सपने हैं | बिना पिताजी के हमारी माँ किसी भी मुश्किल से नहीं घबराई | ऐसे माहौल में भी उसने हमें बुराई से बचाकर रखा | मैं जानती हूँ कि वह नाच-गाना करती है, पर कोई गलत काम नहीं | आज मेरी माँ “जारा बेगम” के इस बुलंद हौंसले की वजह से ही मैं इस स्टेज पर हूँ | उन्होने जो भी परिश्रम किया, तकलीफ़ें उठाईं | मैं अपनी माँ को आप सबसे मिलवाना चाहूंगी क्योंकि मेरी माँ के इस बुलंद हौंसले से उन सबको सीख मिल सके जिनके मज़ाक को सुनकर भी परी कभी डगमगाई नहीं | कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ – ” हों जो हौंसले दिल में कहीं,
कदम वहाँ रुकते नहीं |
क्योंकि जग अभी जीता नहीं,
तुम अभी हारे नहीं, हारे नहीं …………
तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज उठता है …..|
भावना ‘मिलन’ अरोरा
अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक
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कहानी २
करोना काल पर आधारित
इम्तिहान –
सुबह होते ही जब पड़ोस की नज़मा आंटी ने दरवाजा खटखटाया, दूध की थैली उनके हाथ में देख मैंने उनसे पूछा – ” आंटी आप क्यों लाई हो दूध, आपको कैसे पता कि आज दादी नहीं जाएंगी ?”
नजमा बोली – ” बेटा ! भोला, कल ही तुम्हारी दादी की तबियत नासाज़ थी ज़रा, तो मैं समझ गई थी कि सुबह को वो न आएंगी, तुम बाहर कहीं न जाओ इसलिए मुझसे कह रहीं थी कि अगर मैं न आऊँ तो तुम भोला के लिए दूध और फैन दे जाना |”
हाँ नजमा आंटी ! मैं सारी रात सो न सका | दादी को तेज़ बुखार जो हुआ है | करवटें बदलते-बदलते रात निकली | मुझे दादी की बहुत चिंता हो रही है |
इस महामारी के वक्त बेचारी इस उम्र में भी मेरे लिए सुबह उठकर सामान लाती है | सारी ज़िंदगी परेशानियों में बिता दी, पहले माँ-बापू के साथ गाँव में रही, जब मुझे छोटा सा छोड़कर दोनों इस दुनिया से चले गए, तबसे दादी ने ही मुझे संभाला | गाँव में कमाई का कोई जरिया नहीं था तो मुझे पढ़ा-लिखा कर एक बड़ा आदमी बनाने का सपना लेकर वो मुझे दिल्ली जैसे बड़े शहर में ले आईं | आज मैं दसवीं कक्षा में आ गया ये सब दादी की ही मेहनत का फल है | उन्होने घर-घर जाकर काम किया, इन तंग गलियों में छोटी सी किराए की झुग्गी में जहाँ मैंने बचपन से ही छोटी-छोटी जरूरतों के लिए लोगों को लड़ते- झगड़ते देखा | मेरी दादी ने मुझे इन सबसे बचा कर रखा |
हमेशा अच्छा सिखाया और हमेशा मुसकुराती रही, सिर्फ इस उम्मीद में की अब कुछ ही सालों में मैं उनके सपनों को पूरा करूंगा |
वह हर दुख झेल गई लेकिन जबसे लॉकडाउन हुआ वह काम पर नहीं गई | हर वक्त डरी हुई दिखती कि आसपास फैली भयंकर महामारी कहीं………|
.ईश्वर की दया से खाने-पीने का इंतजाम सरकार की तरफ से है लेकिन
उन्होने बहुत दुख झेले ज़िंदगी में और मैं ही उनकी उम्मीद की किरण हूँ, जिसे वह जगमगाता देखना चाहती हैं | अपनी उम्र को हराकर वह मेरे लिए ही जी रही हैं |”
इतना कहते-कहते भोला की आँखों से आँसू बह गए | शोसल डिस्टेन्सिंग की वजह से नगमा ने न तो मुँह से कपड़ा हटाया और न ही भोला को गले लगाया बस इतना ज़रूर बोली –
” बेटा उनके लिए तू ही उनकी दुनिया है |
बस अपनी दादी के पास रह उनको प्यार से समझा कि यह बुरा वक़्त ऊपरवाले का #इम्तिहान है और इस इम्तिहान को हिम्मत से मिलकर पार करना है ” इतना कहकर नगमा वहाँ से चली गई |
भोला उतरे हुए चेहरे के साथ जैसे ही मुड़ा तो उसकी दादी ने उसको भरी आंखो में प्यार लिए कहा कि – ” मैंने सब सुन लिया है, मेरी इतनी चिंता करेगा तो सूख जाएगा |”
“जब तेरे जैसा पोता है मेरा, जो मुझे इतना प्यार करता है तो ये बुखार क्या है, कुछ भी नहीं | मेरी तबियत तो टेंशन से बिगड़ती है, मैं तो तेरी बातें सुनकर ही आधा अच्छी हो गई | जब मेरा भोला मेरे साथ है तो अब ज़िंदगी का कोई #इम्तिहान मुश्किल नहीं | पढ़ाई- लिखाई तो तू कर ही लेगा पर तेरा दिल सोने का है मेरे भोला |”
इतना सुनकर भोला मुस्कुरा दिया दोनों ने एक–दूसरे को स्नेह से देखा,
मानों एक सबल मुस्कुराहट ने मुश्किलों की ज़मीन छीन ली हो |
भावना ‘मिलन’अरोड़ा
नई दिल्ली, कालकाजी
अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक
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कहानी -“किसान का बेटा”
(क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग कहानी को जीवंत करने के लिए किया गया है । )
धन्नों तू भी न बहुत खिसिया गई है, बिना लाड़-दुलार के दूद न देगी | ( बदली चिल्लाई )
तू क्यों इत्ती परेशान होबे है, इसको लेकर | चाहे जैसे हो भाई , इसका दूद बिकने से ही हमार मुन्ना अच्छे से पढ़-लिख पा रओ | ( झुमला ने बदली से कहा )
बदली- हाँ ! बात तो तुमाई सही है पर का बो भी हमारी तरह गाय-भेंसन की सानी,कंडा थापेगो पड़-लिखकें ?
झुमला – ऐसा नई है बदली, तू चिंता न कर एकदिन पड़-लिखके बो बिदेस जाएगो हम काएके लाजें माटी में हात भिड़ाकें बैठे |
अपन दिन-रात लगे जौ चारो उठाबे, का ईके लाजें |
झुमला दिनरात मेहनत करता और रात को थक-टूटकर सो जाता | वह सोते-सोते भी यही सोचता कि बस किसी भी तरह मेरे बेटे के लिए पैसा जमा हो जाए और वह खूब बड़ा आदमी बनकर ठाट-बाट से रहे |
एक दिन की बात है रात के अंधियारे में कुछ ढ़ोर-बछेऊ उसके खेत में घुस गए और सारी फसल को बर्बाद कर दिया |
सुबह जब झुमला ने यह सब देखा तो मानो उसपर बिजली गिर पड़ी हो | एकदम से उसका हृदय व्यथित हो उठा, उसे फिक्र थी तो बस कि, कैसे भी करके मैं अपने बिट्टू का भविष्य बर्बाद नहीं कर सकता | बारिश का मौसम सिर पे था, झुमला समय बर्बाद नहीं कर सकता था | बिना रुके भोर में जल्दी उठकर वह काम पर लग जाता | वह भूख-प्यास सब भूल चुका था, बस याद था कि किसी भी तरह उसे फसल बेचकर बेटे की पढ़ाई में आने वाली हर रुकावट को खत्म करना है | एक दिन बिजली ने देखा कि झुमला को बहुत तेज़ बुखार है फिर भी लगातार वह काम कर रहा था, तभी उसे चक्कर आया और वह एकदम गिर पड़ा | बिजली यह देखकर घबरा गई और ठंडे पानी की पट्टी सिर पर लगाती रही | पूरी रात झुमला बड़बड़ाता रहा ” मुझे कल अपने बेटे की फीस जमा करनी है………| ” यह सब देखकर बदली के आँसू नहीं रुक रहे थे | बुखार कम नहीं हो रहा था वह बहुत घबरा रही थी | कब उसकी सिरहाने आँख लग गई उसे पता न चला, सवेरे उसकी जब आँख खुली तो उसने देखा कि झुमला तो वहाँ नहीं था | वह घबराकर जैसे ही खेतों में आई तो ये क्या ?? झुमला तो दुबारा मेहनत से बोए गए बीजों से निकली बालियों का सूक्ष्म रूप देखकर बहुत खुश था कि अब वह शीघ्र ही बेटे की फीस भिजवा पाएगा ……..
बस दिल में एक चाह थी जिसकी वजह से झुमला को हौंसला मिला और उसके इसी जज़्बे के कारण एक किसान का बेटा अपनी पढ़ाई भी विदेश से पूरी करके आया और उसने अपने ही गाँव का नक्सा बदलके रख दिया |
गाँव में एक नए हॉस्पिटल की ओपेनिंग सेरेमनी पर डॉक्टर साहब हुनर सिंग (झुमला का बेटा ) का सम्बोधन गांववालों को – “झुमला आज इस दुनिया में नहीं है पर सच में मेरे आसपास जो भी पेड़-पौधे खिल रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं उनमे से एक मेरे पिता भी हैं, जिनकी मेहनत और हौंसले की वजह से ही मैं यह सब कर पाया हूँ |” आपको मैंने जिस शख़्स के बारे में आज बताया वह मेरे लिए भगवान थे | शायद मैं उनका अंश कुछ अपने गाँव को दे सकूँ | कहते- कहते डॉक्टर हुनर सिंग ने अपनी अम्मा बदली की ओर देखा और दोनों की आँखें भर आईं |
भावना ‘मिलन’ अरोरा
नई दिल्ली, कालकाजी
अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक
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