ज़ाम उल्फत के पिये भी खूब थे।
गज़ल
2122/2122/212
ज़ाम उल्फत के पिये भी खूब थे।
रात वो हम तुम मिले भी खूब थे।1
मय व मयखाना तुम्हीं साकी भी तुम,
मयकशी जी भर किए भी खूब थे।2
मार सकता पर परिंदा भी नहीं,
राज महलों के किले खूब थे।3
तब कहां थी रेल मोटर गाड़ियां,
हर सफर पैदल चले भी खूब थे।4
खेत औ’र खलिहान में रहते थे जो,
दाल रोटी खा जिए भी खूब थे।5
कृष्ण की मीरा दिवानी हो गई,
भक्ति के किस्से सुने भी खूब थे।6
प्रेम कर “प्रेमी” अमर सब हो गये,
यूं तो जी कर भी मरे भी खूब थे।7
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी