Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2023 · 3 min read

ज़हर

मेरे एक मित्र के पिताजी हैं। ज़ाहिर है वयोवृद्ध हैं। किंतु वे अपने पुत्र के साथ नहीं रहते। पुत्र का भी इस संदर्भ में कोई विशेष आग्रह नहीं है। पुत्र के निवास से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर अकेले रहते हैं।वहां उनके स्वामित्व में तीन कमरे हैं। जिनमें से एक में वो स्वयं रहते हैं तथा दो कमरे किराए पर दे रखे हैं। खुद ही बनाते खाते हैं। जब तक पत्नी साथ थी आनंदित थे। अक्सर तीर्थ यात्रा पर निकल जाते थे। पत्नी कमर दर्द से परेशान रहती थी तो उसे पुत्र के पास छोड़ जाते थे। जीवन ऐसे ही गुजर रहा था। जब तक पत्नी थी ठीक था। पत्नी के गुजर जाने के पश्चात अकेलापन खलने लगा किंतु पुत्र को तथा खासतौर से परिवार वालों को उनके बिना रहने की आदत
पड़ चुकी थी। इसलिए वे उन्हें अपने साथ रखने और उनकी टोका टाकी सहने को प्रस्तुत नहीं थे।
अकेलेपन से ऊबकर वे अक्सर अपने पुत्र के यहां एकाध दिन रहने के लिए चले आते।जब भी मुझसे मिलते एक ही बात कहते।
“पवन जी कहीं से मुझे कोई ऐसा जहर लाकर दे दो जिसे खाकर मैं शांति से प्राण त्याग सकूं।”
मेरा ज़बाब रहता ” अकेले हैं , पैसे रुपए की चिंता नहीं। स्वास्थ्य भी ठीक है। अड़ोसी पड़ोसी भी अच्छे हैं। जीवन का आनंद उठाइए।”
वे कहते “बहुत आनंद उठा लिया , पत्नी के जाने के पश्चात अब अकेले रहना रुचिकर नहीं लगता।”
ऐसे ही कई महीनों क्या दो चार बरस तक चलता रहा। वे जब भी मिलते मुझसे जहर मांगते और मैं उन्हें समझा बुझा कर टाल देता।
एक दिन कुछ समस्याओं के कारण मेरा मूड ठीक नहीं था। वे मुझे मिले और फिर वही मांग रखी।
मैं उनके पास बैठा और शांत स्वर में पूछा ” क्या आप सचमुच में जीना नहीं चाहते ? यदि ऐसा है तो मैं आज ही इंतजाम करता हूं। रात को खाना खाने के बाद एक कप गरम पानी के साथ ले लीजिएगा। नींद में ही कब मौत आ जायेगी आपको भी पता नहीं चलेगा।”
मेरे प्रस्ताव पर वे सकपका गए।
” कौन मरना चाहता है। सबको अपनी जिंदगी प्यारी होती है। लेकिन मेरे परिवार वालों की बेरुखी परेशान करती है। इस उम्र में अकेले के लिए खाना बनाना , बर्तन साफ करना बहुत नागवार गुजरता है। समस्या यह है। जीवन समस्या नहीं है।”
” हूं तो आपको उचित मान सम्मान की आवश्यकता है। दो समय रोटी पानी मिल जाए ये चाहत है।”
” ठीक समझे , यही चाहत है।”
” तो एक काम करिए , आपके पास जो तीन कमरे हैं उन्हे बेच दीजिए , बारह पंद्रह लाख तो आसानी से मिल जाएंगे। यह रकम किसी अच्छे वृद्धा आश्रम के लिए काफी होगी।आप वहां आराम से रह पाएंगे।”
” नहीं , नहीं , वृद्धा आश्रम का मुझे भी पता है। मैं तो पारिवारिक माहौल में रहना चाहता हूं।”
“उसका हल भी मेरे पास है। आप रकम अपने नाम पर फिक्स कर दीजिए। आपको मैं अपने गांव ले चलता हूं। आप मेरे छोटे भाई के परिवार के साथ रहिए। आपको महसूस ही नहीं होगा की आप किसी अजनबी के साथ हैं। जो ब्याज मिलेगा उससे आप का जेबखर्च निकल जायेगा। हां एक काम करना पड़ेगा। फिक्स डिपॉजिट का नॉमिनी मेरे भाई को रखना पड़ेगा। आपके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यहार नहीं होगा इसकी गारंटी मैं लेता हूं।” मेरा प्रस्ताव सुनकर वे ऐसे चुप हुए मानों सांप सूंघ गया। दो चार मिनट तक तो कुछ बोले ही नहीं। वे अगले दस बीस मिनट तक कुछ बोलेंगे ऐसी संभावना भी नहीं लग रही थी।
” क्या सोच रहे हैं ” मैंने उन्हें कुरेदा।
” कुछ नहीं।” धीमी आवाज में ज़बाब मिला।
फिर मैं ही शुरू हो गया ” मैं बताता हूं आपकी क्या चाहत है। आपको सम्मान मिले या न मिले पर आप बार बार अपने पुत्र के यहां आएंगे , अपमानित होंगे , पर आपके पास जो जायदाद , रुपया पैसा है वो अपने नाती पोतों को हो देंगे। आप किसी वृद्ध आश्रम को वो पैसे देकर सम्मान से नहीं जीएंगे और न ही अपनी संतति के अलावा किसी को एक फूटी कौड़ी देंगे। जब आपको मोह माया ने इस तरह जकड़ रखा है तो जीवन से जो प्राप्त हो रहा है उसे स्वीकार करिए और इस जीवन को समाप्त करने के लिए कृपया मुझसे ज़हर मांगना बंद कर दीजिए।”

मुझे भी बाद में पछतावा हुआ की मुझे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन उस दिन के पश्चात मिलना जुलना , नमस्कार , चमत्कार तो शुरू रहा किंतु उन्होंने मुझसे वापस कभी जहर की मांग नहीं की।

Language: Hindi
94 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
Shreedhar
हे आशुतोष !
हे आशुतोष !
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
💐प्रेम कौतुक-486💐
💐प्रेम कौतुक-486💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
Atul "Krishn"
जैसी सोच,वैसा फल
जैसी सोच,वैसा फल
Paras Nath Jha
I lose myself in your love,
I lose myself in your love,
Shweta Chanda
लहर आजादी की
लहर आजादी की
चक्षिमा भारद्वाज"खुशी"
यकीन
यकीन
Dr. Kishan tandon kranti
प्यारा भारत देश है
प्यारा भारत देश है
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
gurudeenverma198
कितनी आवाज़ दी
कितनी आवाज़ दी
Dr fauzia Naseem shad
फेसबुक गर्लफ्रेंड
फेसबुक गर्लफ्रेंड
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)*
*गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
मां
मां
Monika Verma
अफसोस-कविता
अफसोस-कविता
Shyam Pandey
पथ प्रदर्शक पिता
पथ प्रदर्शक पिता
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
Harminder Kaur
पुरानी ज़ंजीर
पुरानी ज़ंजीर
Shekhar Chandra Mitra
दिल लगाएं भगवान में
दिल लगाएं भगवान में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
पूर्वार्थ
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
shabina. Naaz
"आंधी की तरह आना, तूफां की तरह जाना।
*Author प्रणय प्रभात*
दो धारी तलवार
दो धारी तलवार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
2322.पूर्णिका
2322.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
चौमासा विरहा
चौमासा विरहा
लक्ष्मी सिंह
चल अंदर
चल अंदर
Satish Srijan
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
sushil sarna
शृंगारिक अभिलेखन
शृंगारिक अभिलेखन
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पुस्तक समीक्षा - अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर रेत पर कश्तियाँ
पुस्तक समीक्षा - अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर रेत पर कश्तियाँ
डॉ. दीपक मेवाती
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
Acharya Rama Nand Mandal
Loading...