“ज़रूरत”
“ज़रूरत”
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सभी भागे भागे फिरते हैं….
अपनी ज़रूरतों के पीछे !
फिर भी ज़रूरतें किसी की ,
कभी भी पूरे ही ना होते !
कितनी कश्मकश भरी है….
ये अनिश्चितता भरी ज़िंदगी !
हर तरफ़ ही मारा – मारी है….
करनी बस,खुद के क्षुधा की पूर्ति !!
जन्म से मृत्यु तक हमसब,
इतने पड़ाव से हैं गुजरते !
हर पड़ाव पर ही हरदम ,
पीछा करती हमारी ज़रूरतें !
इन ज़रूरतों को पूरा करने को ,
कभी होती पैसे की ज़रूरतें !
कभी पैसे उपलब्ध हो जाते तो ,
समय ही नहीं उपलब्ध हो पाते !
मिलकर ये सारी की सारी बातें !
जीवन में हलचल सी मचा जाते !!
ये सारी ही ज़रूरतें मिलकर….
जीवन में आपाधापी मचा जाते !
हर पल हर कार्य के ही पीछे ,
मनुज सदा दौड़ते ही रह जाते !
फिर भी अपनी ज़रूरतें सारी ,
वे कभी पूरी ही नहीं कर पाते !
एक ज़रूरत जैसे ही पूरी करते ,
कुछ नई ज़रूरतें सामने आ जाते !!
अक्सर इन सारी ज़रूरतों की पूर्ति ,
हम खुद तक ही सीमित रख पाते !
असली ज़रूरतमंद तक विरले ही ,
इसका लाभ हम सब हैं पहुॅंचा पाते !
क्यों इन ज़रूरतमंदों की ज़रूरतों को ,
हम पूरी तरह ही अनदेखी करते जाते !!
उम्र जब बुढ़ापे की दहलीज तक आ जाती ,
तब तक जीवन का सार न हम समझ पाते !
बस,बेमतलब इजूल-फ़िज़ूल की बातों में ही,
कीमती वक्त अपना, हम बर्बाद करते जाते !!
सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई इसी में है कि ,
सबकी ही ज़रूरतों पर अपनी नज़र दौड़ाएं !
कभी-कभार बुरे वक्त की गिरफ्त में आने पर ,
पराये को भी अपना कुछ कीमती वक्त दे पाएं !
पूरी मानव जाति के हितों को ध्यान में रखकर ,
उत्पन्न ज़रूरतों की पूर्ति हेतु प्रयास करते जाएं !
जीवन में सभी कुटुम्ब जन जब साथ मुस्कुराएं….
तभी सम्पूर्ण मानव जाति का ही भला हो पाए !
व सबके जीवन का मक़सद कामयाब हो पाए !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 06 अक्टूबर, 2021.
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