ज़मींदार
मेरे प्यारे गाँव में
पीपल की छाँव में
पक्का मकान है
गाँव भर की शान है
चारों तरफ झोंपड़े हैं
रात में जो सो पड़े हैं
मकान फिर भी जागता रहता है
क्योंकि उसमें ज़मींदार रहता है
वह रात में लोगों की तकदीर बदलता है
किसी का घर किसी की ज़मीन बदलता है
लोग फिर भी खुश हैं
क्योंकि
ज़मींदार देखने में दयालु है
बड़ा ही कृपालु है
वह दूसरे ज़मींदारों की तरह
किसी को कोड़े नहीं लगाता
किसी का घर नहीं जलाता
सिर्फ धन की चोरी करता है
सम्पत्ति की हेरा-फेरी करता है
लोग बहुत खुश हैं कि
ज़मीदार बड़ी मेहरबानी करता है
दूध का दूध और पानी का पानी करता है।
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’