ज़माने की आवाज़
सादर नमन 🙏💐प्रस्तुत है कुछ पंक्तियाँ इन पंक्तियों में मैंने सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है। ये पंक्तियाँ न केवल प्रेम के विषयों से बाहर आकर बड़ी समस्याओं को उठाती है, बल्कि यह भी बताती है कि मेरी लेखनी अब सिर्फ़ भावनात्मक मुद्दों पर नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
“ज़माने की आवाज़ ”
लिख रहा था प्यार पे इक हसीं ग़ज़ल,
शबनम जैसे फूल पे चमक रही ग़ज़ल
लिखने को बहुत और भी मुद्दे हैं जनाब,
कब तक लिखोगे प्यारे,प्यार की ग़ज़ल
वतन की बदलती आबो-हवा पे लिखो,
लिखो किसान की ख़ुदकुशी की ग़ज़ल
तुम लिखो मासूम की घुटी हुई सी चीख़,
या लिखो बिकते हुए इंसाफ़ की ग़ज़ल
करप्सन के खेल में मिले कई पदक हमें,
लिखो ओलंपिक में निम्न स्थान की ग़ज़ल
बेरोज़गारी दिखती नहीं किसी नेता को,
महंगाई की मार पे लिख दो कोई ग़ज़ल
अब राणा की क़लम में जान आ गई शायद
लिख रहा है आजकल ग़ज़ल पे कई ग़ज़ल
© प्रतापसिंह “राणा ”
सनावद (म. प्र )