ज़माना भूल बैठा है वफा क्या
बताओ तो हमें है माजरा क्या
ज़माना भूल बैठा है वफा क्या
हमेशा दूसरों पर हंसने वालों
कभी देखा नहीं है आईना क्या
चमन में हर तरफ है खोफ फैला
किसी के पास है इसकी दवा क्या
हमारी आखिरी ख्वाहिश ना पूछो
चढ़ा दो सूली पर अब तो बचा क्या
तिरी हर बात रद्द करता है अब तो
तिरा बेटा स्याना हो गया क्या
सुना है होता है क़ानून अंधा
हक़ीक़त में ही वह अंधा हुआ क्या
ये मेरा दिल जो तुम पे आ गया है
बताओ इसमें अब मेरी खता क्या
मिरी ख़ामोशियों को सुनने वालों
कहा मैंने जो वो तुमने सुना क्या
मिरे सीने से लग कर रो पडे वो
तो अब रक्खूं भला उनसे गिला क्या
बहुत खामोश से रहते हो आतिफ़
बताओ तो ज़रा हमको हुआ क्या
इरशाद आतिफ़ अहमदाबाद