ज़बाने हिंदी
मीठी मीठी मुझे लगती है ज़बाने हिन्दी।
अपनी तहज़ीब में उर्दू भी है शाने हिन्दी।
इसके माथे पे ये बिंदी किसी दुल्हन की तरह।
हुस्न का करने लगी खुद ही बयाने हिन्दी।
मैंने उर्दू में लिखी नज़्म भी हिन्दी के लिए।
यानी उर्दू भी बढ़ा देती है शाने हिन्दी।
लोग रख देते हैं उर्दू को अलग हिन्दी से।
दर हक़ीक़त है यही काम ज़ियाने हिन्दी।
फ़ख़्र है मुझको मैं हिन्दी भी गज़ब बोलता हूं।
और उर्दू को समझता हूं मैं जाने हिन्दी।
एक दूजे का हैं ज़ेवर ये ज़बानें दोनों।
कब अलग उर्दू से होता है जहाने हिन्दी।
किस महब्बत से है रसखान ने कान्हा को लिखा।
इस महब्बत को वही जाने जो जाने हिन्दी।
ये दुआ रहती है इस दिल की यक़ीनन तन्हा।
आसमानों से भी ऊंची हो उड़ाने हिन्दी।
इक़बाल तन्हा