ज़ज़्बात अपने हैं ख़यालात अपने हैं
ज़ज़्बात अपने हैं ख़यालात अपने हैं
लफ्ज़ मगर मैने चुराए हैं ज़मानेवाले
कभी आन पर बनी कभी शान पर बनी
वादा-ए-वफ़ा हमने निभाए हैं ज़मानेवाले
रेत निकाल कर यारब मेरे पाँव तले की
खड़े- खड़े को कैसे गिराएँ हैं ज़मानेवाले
दिल का तो ख्याल रखना आता नहीं ज़रा
जिस्मों को देखो कैसे सजाएँ हैं ज़मानेवाले
कह तो दिया थक चुकी हैं ‘सरु’ फिर क्यूँ
जितना रुके उतना ही चलाएँ हैं ज़मानेवाले