ज़ख्म दिल में छुपा रखा है
हर ज़ख्म मैंने अपने,दिल में छुपा रखा।
तन्हाइयों को ही ,अपना साथी बना रखा।
मरहम कोई भी ,लेकर नहीं आता हाथ में
मालूम है हर हाथ में ,नमक है छुपा रखा।
हम सुनाये किसे ,कैसा है हाल दिल का
जिसने सुना , हंसी को होंठों में दबा रखा।
वक्त बे वक्त मुझे वो,याद करता तो होगा
सामने सब के,मेरा नाम बेवफा जिसने रखा।
कितने सुकून से सो लेते हैं,नींद उडांने वाले
हमने जिनको कभी,पहलू में ही छुपा रखा।
सुरिंदर कौर