ज़ख्म ऐ दिल
मत पूछो कितने ज़ख्म खाए हुए हैं ,
हम तो यारो हालात के सताए हुए हैं।
ज़बीं पर क्या है लिखा नहीं जानते ,
हम तकदीर से अपनी उलझे हुए हैं।
जिंदगी ने दिए मौके बे शुमार मगर ,
मंजिल -ऐ- आरजू लिए भटक हुए हैं।
तस्कीं नहीं होती बेसब्र दीवाना है हम ,
ना जाने कितने अरमानो को ढोए हुए है।
कभी तो आयेगा अच्छा वक्त हमारा भी ,
आँधियों मे उम्मीद ए शमा जलाये हुए हैं।
क्या हमारे ख्वाबों की ताबीर हो सकेगी ?,
ऐसे सवाल हमें कश्मकश में डाले हुए हैं।
माज़ी की यादों से यूं ही खुद को बहलाते हैं ,
कल का पता नही,आज को भी खोए हुए हैं।
अब तू ही दिखा कोई रास्ता”अनु”को ऐ खुदा !,
बड़ी आरजू लिए तेरे दर पर हम आये हुए हैं।