//••• क़ैद में ज़िन्दगी •••//
रोक देते हैं, ज़ख़्मीं पंख परिंदों के सफ़र
क़ैद में ज़िन्दगी ढाहो ना इतना भी कहर
घरौंदे आँधियां तोड़ें यूं दरख्तों से कर जबर
गुस्ताखियों की बस्ती में उलझा रहा भंवर
क़ैद में……………………………………..
आंखें भरी-भरी लगें,चेहरा उदासियों का शहर
ज़ीना भी बोझ लगे, ज़हर ये आठो पहर
क़ैद में………………………………………
आह निकले भी तो, वो जाए तो जाए किधर
रोक लेती हैं ये दीवारें, सिसकियों की डगर
क़ैद में……………………………………..
नयन अश़्कों से भर जाए, बहे जैसे हो नहर
दर्द-ए-दिल इतना भी ना हो, कि वो जाए ठहर
क़ैद में………………………………………
ये बर्बादियों की आँधियां, ढाहेंगी कितने घर
क़ैद-ए-आगोश से “चुन्नू” रख इन पर तु नज़र
क़ैद में……………………………………….
//•••• कलमकार ••••//
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)