ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
जब भी आते हो इक ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
पर मेरे दर्द का मलहम बनके तुम कब आओगे।।
आज वक्त है तुम्हारा तो तुम्हीं हुकूमत करलो।
पर बदलती तो कुदरत भी है यह जान जाओगे।।
इतना ही दर्द देना कि हम सह ले हंसकर इसे।
वरना हमनें दिया जो तुमको तो ना सह पाओगे।।
ये सोचके ही मांगना कि हम दे दे उसे तुमको।
वरना हमारे घर से तुम भी खाली हाथ जाओगे।।
गर मारना हमको तो जान से ही मार देना तुम।
जो बच गए हम तुमसे तो तुम ना बच पाओगे।।
सुना है तुम करते हो सबके ज़िंदगी के फैसले।
कभी अपनी भी सोची है जहाँ से कैसे जाओगे।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ