ज़ख़्म जो दिल पे लगे हैं वो छुपाऊँ कैसे
2122 1122 1122 22
ज़ख़्म जो दिल पे लगे हैं वो छुपाऊँ कैसे
उसने बोली नहीं जो बात भुलाऊँ कैसे
दिन मेरे कैसे गुज़रते हैं मुझे मत पूछों
रात किस तरह गुज़रती है बताऊँ कैसे
नींद आंखों से कहीं दूर चली जाती है
उसके सपनों को इन आंखों में सजाऊँ कैसे
टूटते तारों से ही उसको कभी मांगूंगा
टूटने के लिए तारों को मनाऊँ कैसे
सोचता है वो कभी लौटके तो आएगा
सच बताकर मैं मेरे दिल को रुलाऊँ कैसे
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’