#जहाज
🔥 #जहाज 🔥
जब धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ तब पंजाब के सोलह ज़िले उधर चले गए और तेरह शेष रहे। रामसुतकुश का कसूर नगर जो एक समय प्रसिद्ध वाणिज्यिक केंद्र था वो भी गया और कुशअनुज लव का लाहौर जिसके संबंध में जनश्रुति थी कि जिसने लाहौर नहीं देखा वो जन्मा ही नहीं, वो लाहौर भी गया। स्यालगोत्रीय जाटों का कोट जहां पहला कृषिविश्वविद्यालय था वो स्यालकोट भी गया और राणा रावल की पिंडी रावलपिंडी भी अपनी न रही। श्रीनगर से चलकर सागरमिलन से पूर्व वितस्ता किनारे यों तो अनेक बस्तियां बसीं परंतु, वितस्ता अर्थात जलम अथवा जेहलम के किनारे महाराज पुरु ने जहां नरपिशाच सिकंदर को प्राणदान दिया वही प्राणों से प्यारा नगर जेहलम भी छूट गया। जहां धर्मराज युधिष्ठिर ने यक्ष को संतुष्ट किया उसी महातीर्थ कटासराज के दर्शन अब वीज़ा के बिना नहीं हो सकते। रावी भी छूटी और चिनाब भी छूट गई। करोड़ों उजड़ गए लाखों मारे गए। तब सत्तापिशाचिनी की प्यास बुझी।
भारतभूमि से जुड़े पंजाब में श्रम व बुद्धि ने नया इतिहास रच दिया। यहां प्रतिव्यक्ति आय पूरे देश के अनुपात में अधिक नहीं बहुत अधिक थी। लुधियाना जलंधर अमृतसर ने वो कीर्तिमान रचे कि पूरा विश्व चकित हो कर देख रहा था।
लेकिन, सत्ता की भूख ने एक बार फिर पंजाब के सीने को छलनी किया। वस्तुतः इस विनाश के बीज तभी रोपे गए थे जब पंचनद को पंजाब पुकारा जाने लगा था। तब पोठोहारी, माझी, मलवई, दोआबी आदि विभिन्न बोलियों को एक नाम दिया गया था “भाषा पंजाबी”। इसी पंजाबी के आधार पर पंजाबी सूबा की मांग उठी। अब पंजाब से हरियाणा अलग हुआ। हरियाणा, जो कि पंजाब का पिछड़ा क्षेत्र कहलाता था। देखते ही देखते इसने पंजाब को मीलों पीछे छोड़ दिया।
लेकिन, किंतु, परंतु का क्या किया जाए। इनके बिना तो संभवतया हरिकथा भी न कही जा सके। अंग्रेज़ों की बांटने और राज करने की नीति ने सिक्खों को हिंदुओं से अलग किया। और फिर काले अंग्रेज़ों ने जैन बौद्ध आदि को अलग किया। यह कहानी फिर कभी, अभी बात पंजाब की।
सत्तापिशाचिनी फिर जीभ लपलपा रही है। धरती के बेटे फिर से उजड़ेंगे, फिर से काटे जाएंगे मारे जाएंगे। जो लोग देश के प्रधानमंत्री को ठोक देने की कह रहे हैं वे बहुत जल्दी ही प्रधानमंत्री की हत्या के परिणाम को भूले बैठे हैं। तब देश में जो सिक्खों का नरसंहार हुआ था उसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता। परंतु, किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया को कैसे रोका जाए? तब मुहावरे तक पलट दिए गए थे कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है”। सही कथन यह है कि “जब धरती हिलती है तब बड़े-बड़े पेड़ गिर जाया करते हैं”।
अब यदि फिर से पंजाब के सीने पर छुरी चली तो जनसंख्या के अनुपात के अनुसार चालीस-पैंतालीस प्रतिशत भूमि भारत की मुख्य भूमि से जुड़ी रह पाएगी। शेष एक नया देश होगा। इस नये देश के निवासियों को असम में श्री गुरु नानकदेवजी के चरणों से पवित्र हुए स्थल “रीठा-मीठा” की केवल स्मृतियां ही शेष रहेंगी। दशमेश पिता की जन्मभूमि पटना और उनके ज्योतिज्योत समाने की पावन भूमि के दर्शन तो दूर श्री गुरुतेगबहादुर ने धर्महित जहां शीश दिया उस दिल्ली तक भी बिना वीज़ा जा पाना असंभव हो जाएगा।
जिस धरा को गुरु गोबिंदसिंह जी ने अपनी तपोभूमि बनाकर पावन किया, जिस पवित्रस्थल के दर्शनों को युवा मोटरसाईकिलों पर निकल जाया करते हैं, उत्तराखंड में उस हेमकुंट के दर्शन का सपना खंड-खंड होकर बिखरेगा।
जब इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत पूरे देश में सिक्खों का नरसंहार हुआ तब जहां-तहां से अनेक सिक्ख पंजाब में बसने को चले आए। पंजाब में उन्हें सिरमाथे बिठाया गया। परंतु, बरसों तक पंजाबी सभ्यता संस्कृति से दूर रहने के कारण जो परिवर्तन उनमें आए वे स्पष्ट दीखते थे। और जब उनके कारण पंजाब के स्थायी सिक्ख निवासियों के आर्थिक हितों को चोट पहुंचने लगी तब उनका एक नया नामकरण हुआ, “जहाज”। आज, छत्तीस वर्ष के बाद भी वे जहाज ही हैं।
अब यदि पंजाब की छाती को फिर से चीरा गया तो वहां से निकलने वाला हिंदु तो विशाल भारत में कहीं भी बसने का अधिकारी होगा। परंतु, पूरे देश से जो जहाज उड़ेंगे उनकी शरणस्थली केवल पंजाब होगा जो यथार्थ में तब पंजाबी सूबा नहीं सूबी होकर रह जाएगा।
धरतीमाता की पीड़ा का वहीं अंत नहीं होगा। पंजाब के गांवों में जहां कई-कई श्मशान थे वहां अब कब्रस्तान भी हैं। समय आने पर उन कब्रों के निवासी भी अपना अलग पंजाब अथवा मसीहस्तान मांगेंगे।
हे प्रभु ! दया करना . . . !
इन पंक्तियों का लेखक उस परिवार से है जहां बड़े बेटे को गुरु का सिक्ख बनाने की परंपरा थी। वस्तुतः पंजाब में दो प्रकार के सिक्ख हुआ करते थे। एक केशधारी और दूजे सहजधारी। जिन्हें मोने कहा जाता था। इस बात को यों भी कह सकते हैं कि पंजाब में दो प्रकार के हिंदु हुआ करते थे। मेरे दोनों बड़े भाई जब पढ़ने को पाठशाला जाने लगे तब वे पगड़ी बांधकर ही जाया करते थे। अमर बलिदानी वीर भगतसिंह का परिवार आर्यसमाज का अनुयायी भी था और वे केशधारी सिक्ख भी थे।
जब प्रथम बार अंग्रेज़ों ने केशधारी सिक्खों को अल्पसंख्यक घोषित करके हिंदु समाज में कलह के विष का बीजारोपण किया तभी से अनर्थ होना आरंभ हुआ।
आज कुछ केशधारी सिक्खों में एक ऐसा विचित्र दुराग्रह पनप रहा है जैसा कि विश्व के किसी भी धर्म, संप्रदाय अथवा पंथ में नहीं है। जिन लोगों ने इनका अहित किया, इन्हें अपमानित किया यह उन्हें अपना मानते हैं और जो इनके सुखदुख का साथी है उसे अपना शत्रु घोषित करते हैं?
श्री गुरु नानकदेव जी महाराज के समय में ही आक्रांता बाबर का भारत आगमन हुआ। उन्होंने उस समय जो लिखा उसका भावार्थ इस तरह है कि “बलात् दान मांगने वाला आततायी पाप की बारात लेकर काबुल से आया है। स्थिति इतनी विकट है कि सत्य और धर्म छिप गए हैं और असत्य का बोलबाला है।”
मुसलमान शासक ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी महाराज को जलते तवे पर बिठाया। नीचे आग जल रही थी और सिर पर गर्म रेत डाली जा रही थी। अंत में उन्होंने जलसमाधि ले ली।
नौवें गुरु तेगबहादुर जी ने जब इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया तब उनका शीश काटने का फतवा जारी किया गया। दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा उसी स्थान पर है। जो भी भारतीय/हिंदु दिल्ली जाकर वहां शीश नहीं नवाता उसका दिल्ली जाना ही नहीं, जीना भी निष्फल है।
गुरु गोबिंदसिंह जी के सत्रह और पंद्रह वर्ष के बेटे युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए और नौ व छह वर्ष के बेटों को दीवार में चिनवाने का फतवा जारी हुआ। जब दीवार बार-बार गिरने लगी तब उन्हें हलाल करने का फतवा जारी हुआ। इस तरह दो मासूम बच्चों की हत्या की गई।
यदि यह बीते इतिहास की बातें हैं तो आज की सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में अब नाममात्र को सिक्ख बचे हैं। ऐतिहासिक गुरुद्वारा के ग्रंथी की बेटी का अपहरण हुआ। उसका धर्मांतरण करवाके मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह पढ़वा दिया गया। यहां किसी ने चूं तक नहीं की।
अफगानिस्तान से सिक्ख समाप्त हो चुके। जो बच रहे थे उनके पुकारने पर वर्तमान शासन की ओर से उन्हें भारत सुरक्षित लाया गया। उन्हें भारत की नागरिकता दी गई। परंतु, केशधारी सिक्ख उस कानून के ही विरोध में हैं जिसके अधीन वे इस देश के नागरिक हुए। और सबसे विचित्र बात तो यह है कि यह उन्हीं धर्मांधों को अपना भाई मानते हैं जिनके ज़ुल्म से तंग आकर इनके धर्मसहोदरों ने अपने जीवन की रक्षा के लिए भारत सरकार से गुहार लगाई थी।
इंदिरा गांधी के कहने पर हरमंदिर साहिब अमृतसर पर आक्रमण करने के आदेश पर हस्ताक्षर करने वाला देश का राष्ट्रपति भी सिक्ख था। जो यह कहता था कि मैं अपनी नेता के कहने पर झाड़ू भी लगा सकता हूं।
गुरुघर का अपमान करने पर जब कुछ लोगों ने समय की प्रतीक्षा न करके अति उत्साह में आकर कानून को अपने हाथों में लिया और अपराधी को दंडित किया तब पूरे सिक्ख समुदाय का नरसंहार करनेवाली कांग्रेस की सरकार पंजाब में लौट-लौटकर आती है।
जिसे स्वामीभक्ति के पुरुस्कारस्वरूप प्रधानमंत्री पद मिला वो भी केशधारी सिक्ख ही था। वो उस कांग्रेसमाता के दरबार में सदा हाथ जोड़े खड़ा रहा जिसके पास अनुभव के नाम पर मदिरालय में ग्राहकों की सेवाटहल ही थी, जो शिक्षा में उसके सामने निरी बच्ची और आयु में सचमुच ही बच्ची थी। सोशल मीडिया पर उसकी अनेक वीडियो उपलब्ध हैं जिन्हें देखकर आंखें लज्जा से झुक जाती हैं।
ऐसा क्यों है?
आइए, ईश्वर से प्रार्थना करें कि सभी को ऐसी सद्बुद्धि मिले कि पूरा देश ही खालिस्तान हो जाए। जिसमें खालिस अर्थात शुद्ध प्रभुप्रेम की बयार बहती रहे और सुख शांति व स्मृद्धि के फूल सदा खिलते रहें। और, फिर कभी कोई अपनी जड़ों से उखड़कर “जहाज” न कहलावे।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)