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26 Nov 2023 · 1 min read

जहां से चले थे वहीं आ गए !

दूर तलक जाने को,
निकले थे पांव अभागे।
जो लगी ठोकर सफर में,
जहां से चले थे वहीं आ गए।

प्रतिस्पर्धा ,बहुत ज्यादा थी,
जिंदगी परीक्षा लेने आमादा थी।
जरूरत थी तेज दौड़ लगाने की,
हम दौड़े मगर घायल हो गए।

नजरें हमारी लक्ष्य पर थी,
मंजिल हमारी अक्ष पर थी।
हमने तीर संधान किया,
डोर टूटी,हम जख्मी हो गए।

थोड़े बढे, कुछ आगे बढे,
बढ़ते रहे,बढ़ते ही गये।
‘दीप’ घुटनों से चलने वाले,
पैरों पर अपने खड़े हो गए।

-जारी
-©कुलदीप मिश्रा

©सर्वाधिकार सुरक्षित
आपको ये काव्य रचना कैसी लगी कमेंट के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।आपके द्वारा की गई मेरी बोद्धिक संपदा की समीक्षा ही मुझे और भी लिखने के लिए प्रेरित करती है, प्रोत्साहित करती है।

Language: Hindi
3 Likes · 263 Views

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