दीप की अभिलाषा।
दीप की अभिलाषा।
नहीं चाहता होना रोशन,
न ही है चमकने की आस ।
चाहूं तम न रहे धरा पर,
चहुं ओर हो ज्ञान प्रकाश।
न रहे असमानता समाज में,
न ही हो छुआछात की बात।
हिन्दू मुस्लिम समझे न खुद को,
सभी रहें मिलजुल एक साथ।
न हो अस्मिता हरण नारी का ,
न हो दोयम दर्जे की बात।
घर,काया तक रहें न सीमित,
मिले उसे भी उड़ने को आकाश।
न दिव्यांग हों अपशकुनी,
न कभी उनसे हो भेदभाव।
सशक्त करें सब मिल उनको,
दिव्यता का हो उनको आभास।
न हो कोई वृद्धा आश्रम,
न वृद्धों से हो कुव्यवहार ।
घर में दर्जा ऊंचा हो उनका,
रहें हमेशा संयुक्त परिवार ।
न बेटी मिले कोई सूटकेस में,
न बेटा कोई फंदा लगाए।
मिले सबको जीवन की शिक्षा,
सबको जीवन से प्रेम हो जाए।
न कोई अकेला रहे तनाव में,
न ही कोई सदमे में जाए।
सोशल मीडिया पर हो सभी ,
लेकिन समाज दूर न जाएं।
न रहे गरीब कोई वतन में,
न सोए कोई भूखा रात।
पोषण मिले सभी को उम्दा,
सो सो वर्ष जिएं सब साथ।
न हो कोई चारा घोटाला,
न हो व्यापम जैसी बात।
निष्पक्षता हो, हर जगह,
सबकी सुनी जाए हर बात।
न हो बेरोजगारी देश में,
न हो मंहगाई हद पार।
संतुलन बना रहे सभी में,
सबके चलते रहें व्यापार।
न हो राजनेता भ्रष्टाचारी,
न ही हो रिश्वत की बात।
काला धन न रहे देश में,
हर रूपये से हो विकास।
न हो पश्चिम का अंधानुकरण,
न हो संस्कृति पर कुठाराघात।
अब कभी न राम रहें टेंट में,
न पूछे कोई किसी की जात
न हो कोई अशिक्षित यहाँ पर,
न ही हो कोई अंधविश्वास।
‘दीप’ ज्ञान का सबके अंतस हो,
सब फैलाएं चहुं ओर प्रकाश।
-जारी
-कुल’दीप’ मिश्रा