जहां को दिलवालों की कद्र करते किसने देखा है
जहां को दिलवालों की कद्र करते किसने देखा है
किसी पत्थर को आख़िर आह भरते किसने देखा है
सदा से आते जाते हैं मौसम ये रुत बहारों की
जहां में सुख-दुख की शै को ठहरते किसने देखा है
वक़्त ने बहुतों को मारा है मगर ए दुनियाँ वालो
मुझे ये बतलाओ वक़्त को मरते किसने किसने देखा है
काठ की हां डी इक बार ही चढ़ती है सुन लो
गिर चुके जो नज़रों से उभरते किसने देखा है
रूह निकली है’सरु’ बन के बादल सीने से फिर भी
इस समंदर को बनते बिखरते किसने देखा है
नाज़ गुल को था ख़ूबसूरती -ओ-खुश्बू पे अपनी
आँधियाँ ले गई जिनको सँवरते किसने देखा है
बहुत खाते हैं कस्में संग में जीने और मरने की
यहाँ मरने वालों के संग मरते किसने देखा है
—–सुरेश सांगवान’सरु’