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9 Feb 2017 · 1 min read

जहाँ फूल बिखरे हुए ज़िन्दगी में

जहाँ फूल बिखरे हुए ज़िन्दगी में
वहीँ काँटे भी हैं छिपे ज़िन्दगी में

नहीं हार मानी कभी हार कर भी
तभी सीढियां हम चढ़े ज़िन्दगी में

नदी आँसुओं की गई सूख अब तो
हमें गम बहुत ही मिले ज़िन्दगी में

रहा खुश हमें देख रोते जमाना
जला वो अगर हम हँसे ज़िन्दगी में

अकेले रहे भीड़ में भी सदा हम
न अपना कोई पा सके ज़िन्दगी में

भले ‘अर्चना’ ठोकरों से गिरे हम
मगर चलते ही बस रहे ज़िन्दगी में

डॉ अर्चना गुप्ता

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