जहाँ फूल बिखरे हुए ज़िन्दगी में
जहाँ फूल बिखरे हुए ज़िन्दगी में
वहीँ काँटे भी हैं छिपे ज़िन्दगी में
नहीं हार मानी कभी हार कर भी
तभी सीढियां हम चढ़े ज़िन्दगी में
नदी आँसुओं की गई सूख अब तो
हमें गम बहुत ही मिले ज़िन्दगी में
रहा खुश हमें देख रोते जमाना
जला वो अगर हम हँसे ज़िन्दगी में
अकेले रहे भीड़ में भी सदा हम
न अपना कोई पा सके ज़िन्दगी में
भले ‘अर्चना’ ठोकरों से गिरे हम
मगर चलते ही बस रहे ज़िन्दगी में
डॉ अर्चना गुप्ता