जहाँ दिल ना बसे बसे, न है मानव मकान l
जहाँ दिल ना बसे बसे, न है मानव मकान l
जहाँ दिल है बिका बिका, जग तो वो दूकान ll
सब कर्मो का कोप है, डरता है डरपोक l
सहज सत्य का लोप है, कैसे पाए लोक ll
द्वेषी जीवन जाप का, द्वेषी शब्द प्रताप ।
ओ बुद्धिहीन हो कहाँ, बोलो बोलो आप ।।
सहज सच है जहाँ जहाँ, नही है वहाँ आप l
सोचो सोचो सहज से, कहाँ कहाँ है आप ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न