जस भोजन, तस आप, पियो मत धारा गंदी
गंदी नाली बन गया पी शराब की धार|
गिरवी रखा समूल मन, गहकर जगत्-विकार||
गह कर जगत्- विकार, बन गया भ्रम का साया|
आत्म-ह्रास-संताप, बढा हो गया सवाया||
कह “नायक” कविराय, ऩशा तज, गह आनंदी|
जस भोजन, तस आप, पिओ मत धारा गंदी||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता