जवाब वाला खत
तुम्हारा लिखा वो खत
वो खत जो मुझे मजबूर कर रहा था
खता करने से
वो खत जिसे तुमने चुपके से रख दिया था
मेरे छत की बालकनी में
और गायब ही हो गयी थी
ये जाने बिना की
क्या सचमुच वही पनप रहा था
मेरे भीतर भी
जिसका जिक्र तुमने किया था खत में
तुम्हारे लिखे उस खत को फाड़ दिया था मैंने
और फेंक आया था कूड़ेदान में
जो तुमने देख लिया था शायद इसलिए
तुमने ना कभी जवाब माँगा
ना ही अपनी भावनाओं के कतरे जाने का हिसाब माँगा
तुम्हारा जाना खटक गया था मुझे
तुम्हारा न होना तड़पा गया था मुझे
तुम्हे कैसे बताऊँ ,मैंने भी लिख रखा था
तुम्हारे लिए
जवाब वाला खत
पर तुम्हे दे नहीं पाया
कुछ डरता था दुनिया से
और कुछ डरता था अपनी किस्मत से
शायद काबिल नहीं था तुम्हारे
इसलिए आज तक भेज नही पाया तुम्हे
मेरा जवाब वाला ख़त–अभिषेक राजहंस