“जवानी”
“जवानी”
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सूरज ढला, रात्रि हुई,
सुबह नई किरणें निकलेंगी,
यदि हो गया सर्वस्व नष्ट,
ऐ वीर पुरूष ना अधीर हो,
फिर से सजा लो सपने अनमोल,
है कठिन परिस्थिति संघर्ष करो,
निज को न असहाय करो,
उत्पन्न हुई जो अंतः पीड़ा,
ह्रदय में न पलने दो,
सब तुम्हारे हाथ, रग-रग में तुम्हारे रवानी है,
आहत मत करो निज को इतना, तुझमें अभी जवानी है।1
धरती से अम्बर तक,
तेरा ही गुणगान है,
तू पहचान कर निज पुरुषार्थ को,
तुम पर निर्भर संसार है,
कुछ लुट गया, कुछ नष्ट हुआ,
सब कुछ गया, जाने दो,
हैरान न हो, विचलित न हो,
उम्मीद को जिंदा रहने दो,
ये आंखों में आंसू नहीं, तेरे प्रति जुनून की कहानी है,
आहत मत करो निज को, तुझमें अभी जवानी है।2
खो दिया, क्या पा लिया?
चिंता न कर तुच्छ चीज का,
जो बीत गया उसे भूल जा,
कर लो मजबूत इरादों को,
तू है प्रगतिशील अटल पुरष,
एक सकारात्मकता में ही तुम्हारी सफलता है,
जीवन का कर्ज चुकाना है ,
कुछ करके तुझे दिखाना है ,
ये काव्य समर्पित है तुमको,नित्य गाथा गाती तुम्हारी जुबानी है ,
आहत मत करो निज को इतना, तुझमें अभी जवानी है।।
वर्षा(एक काव्य संग्रह) से/ राकेश चौरसिया