जवानी में मौत ( अभिनेता स्व सिद्धार्थ शुक्ला को समर्पित )
माना मौत पर किसी का बस नहीं,
मगर यह उम्र भी क्यों देखती नहीं ?
वजह चाहे जो भी रुखसत लेने का ,
अंजाम तो एक ही है कुछ नया नहीं।
यह नसीब का खेल है या दुश्मन कोई ,
फूलों को जो वो खिलने देते ही नही ।
उमर दराज तो जी चुके होते है जिंदगी ,
मगर इन्होंने जिंदगी में देखा कुछ नहीं।
माली ने जिसे पाला हो बड़े अरमानों से ,
उसके फूलों को चुरा लेना इंसाफ नहीं ।
अभी तो ख्वाबों को पंख लगने लगे थे ,
अभी तो एक भी आरजू पूरी हुई नहीं।
बुझा कर रख दिया क्यों यह चिराग तूने ,
बूढ़ी आंखो को अंधेरा रास आयेगा नहीं।
जाने क्यों इतनी जालिम होती है ये मौत,
इसके सीने में दिल लगता है होता ही नहीं।
मां की गोद से मासूम जिंदगियां छीन लेती ,
जिन्होंने अभी नन्ही आंखें खोली भी नहीं।
जाने कैसा आलम है परवरदिगार ही जाने ,
मगर उसे क्या कहें , जो खबर रखता नहीं।
वो तो इस दुनिया ए गुलशन का माली है”अनु”
उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी हिलता नहीं।