जवानी बेंच दी मैंने
किसी के प्रेम की दिलकस, निशानी बेंच दी मैंने
रहा एकाकी बनकर के, रवानी बेंच दी मैंने
गया दो कौर के खातिर, ठिकाना छोड़कर अपना
कमाने चंद पैसों को, जवानी बेंच दी मैंने
अदम्य
किसी के प्रेम की दिलकस, निशानी बेंच दी मैंने
रहा एकाकी बनकर के, रवानी बेंच दी मैंने
गया दो कौर के खातिर, ठिकाना छोड़कर अपना
कमाने चंद पैसों को, जवानी बेंच दी मैंने
अदम्य