जवानी के दिन
इत्र छिडक , कालर उठाकर
बाईक चलाया करते थे
काला चश्मा पहन शान से
कहर ढहाया करते थे
रोज मांग की नई मांग से
बाल संवारा करते थे
नाई को भी हेयर स्टाईल की
स्टाईल सिखाया करते थे
कितने फैले रिश्तो को भी
खूब निभाया करते थे
मित्र मंडली संग रोज शाम को
पान चबाया करते थे
खूब किताबे पढ़ते रातो मे
मिलती जो उपहारो मे
कुछ हसीन पन्नो को सीने पर
रख सो जाया करते थे
कठिन नही थी कोई डगर
ना कडा कोई मौसम
खाली जेब, पर साहसी पैर से
हर मंजिल नापा करते थे
मौज मस्ती का बहता दरिया
रोक सका ना कोई जालिम
पर मां को दिया वचन सदा ही
खूब निभाया करते थे
यादो का यह झुरमुट उजला
मन को बहलाता है गहरा
अरमानो से भरी पोटली
मन भर दे खुशियो का मेला
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर