जल
जल है तो धरा है, वृक्ष है,
वायु है, सब अन्न है ।
ये सब है तो जीव हैं
सृष्टि सर्व सम्पन्न है ।
हमारी संस्कृति बताती
जल वरुण देव का प्रसाद है ।
और हम जानते है
प्रसाद का एक कण भी
संजो लिया जाये, व्यर्थ न हो ।
आओं लौट चले स्वसंस्कृति की ओर
हमारा घर है वो
हमारी हर आपदा से हमें
माँ की तरह उबार लेगी ।
बहुत भटक लिए इधर उधर
अब स्वसत्ता स्वीकारें ।
बहुत दोहन कर चुके प्रकृति का
फिर से उसे सन्मान दे संवारें ।
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