जल ही जीवन है – एक विडम्बना
बहुत बातें होती है
पानी तेरे ऊपर
तू है निश्छल
प्यास बुझाने वाला
सब की
चाहे हो अमीर या गरीब
इन्सान ने बांट लिया तुझको
अमीर को ज्यादा
बेहिसाब खर्च करने वाला
गरीब को दर दर भटकाने वाला
आँखो में पानी की बात
कह कर नारी को
जाता है दबाया
पुरूष निलज्ज हो कर
पी जाता है
आँखो का पानी नारी का
पर्यावरण को चूस चूस कर
पी जाता है इन्सान पानी
फिर गाली देता है प्रकृति को
जब नहीं बरसाता है पानी
जल ही जीवन है
कहते है बड़े पंडित ज्ञानी
बरवाद करते है यहीं जल
दुनिया को दिखा अंगूठा अज्ञानी
पानी से बेवफाई
मंहगी पड़ेगी हे इन्सान
जब पानी मांगेगा
हर एक से इन्साफ
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल