जल से जग में ज़िन्दगी (जनक छन्द)
कर अश्कों की बात फिर!
सावन नैना बन गए,
होनी है बरसात फिर // 1. //
कर जल की तू बन्दगी।
बिन पानी सब सून है,
जल से जग में ज़िन्दगी // 2. //
आज अभी सबको बता!
जल जायेगा विश्व ये,
वर्षा के जल को बचा // 3. //
लुप्त हो रही चील क्यों?
दूषित है वातावरण,
सूख रही है झील क्यों // 4. //
शुद्ध नहीं आबो-हवा!
दूषित क्यों पर्यावरण,
ओ मानव चेतो ज़रा // 5. //
नदिया क्यों नाला बनी?
इस पर करो विचार तुम,
रोको आबादी घनी // 6 . //
मानव खोले नैन कब?
दूषित जल से हो रही,
मछली भी बेचैन अब // 7. //
सुबह-शाम, दिन-रात में!
छह ऋतु, बारह मास हैं,
ग्रीष्म-शरद-बरसात में // 8. //
अंतरघट तक प्यास है!
वर्षा से बुझती नहीं,
मनवा बड़ा हतास है // 9. //
जल बिन ये जीवन जले
पृथ्वी समस्त झूमती
जल बरसे अम्बर तले // 10. //
सावन का जो रूप है
वसुन्धरा यह भीगती
पृथ्वी के अनुरूप है // 11. //
तपे हुए थे भीष्म में
वर्षाऋतु अनमोल है
भूल गए थे ग्रीष्म में // 12. //
बरखा का आनन्द है
भीगा समस्त विश्व में
वर्षाऋतु का छन्द है // 13. //
बरखा की बून्दें पड़ी
धुलकर तन की गंदगी
मन की सुन्दरता बढ़ी // 14. //
बरखा द्वारे आ गई
बून्द बनी गंगाजली
समस्त कष्ट मिटा गई // 15. //
पूछिए महावीर से
वर्षाऋतु की बाढ़ में
डूब रहे गम्भीर से // 16. //
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