जल प्रदूषण पर कविता
देखो वह नदी, जल से बहती हुई,
पानी की धार चढ़ाकर जाती हुई।
परियों की दुनिया, पक्षियों का आसरा,
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यहाँ है सबकुछ हमारा।
लेकिन मनुष्य ने खुद को भूला दिया,
जल को प्रदूषित करके खुद को बर्बाद किया।
कचरे से भरी हर गली, हर नदी और तालाब,
अपने ही हाथों से अब हम ले आए सैलाव ।
नदियों में बह रहा है जहरीला जल,
मछलियों की मृत्यु हो रही है निश्छल ।
करोड़ों लोगों के लिए यह जीवन का स्रोत,
लेकिन हमने इसे बना दिया है विनाश का स्रोत।
हमारे गंदे कर्मों का परिणाम है प्रदूषित जल,
हरा -भरा पर्यावरण भी हो रहा है हलाहल |
पेयजल के लिए जहाँ लोग लड़ रहे हैं युद्ध,
हम अपने ही स्वार्थ में जल को कर रहें है विशुद्द |
इस जल प्रदूषण से हमें लोगों को जगाना होगा,
अपने आदर्शों को बदलकर जीना होगा।
जल संरक्षण की ओर कदम बढ़ाना होगा,
साफ़ पानी की माँग कर जीवन बचाना होगा |
गंदगी को दूर करो, जल को शुद्ध बनाओ,
पृथ्वी माता का आशीर्वाद पाओ।
हमारी पीड़ा सुनकर वे हृदय विचलित हो जाएँगे,
साफ़ जल की माँग पूरी करके हम आदर्शों के पार जाएँगे।