जल दिवस
” जल दिवस ”
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बादलों के
पीछे से !
बिखेरने आया हूँ !
मैं भास्कर…….
अपनी रश्मि !
निथरे हुए जल पर !!
क्यों कि आज
“जल दिवस” है !
दिखता नहीं हैं
शायद !
मानव को…….
जल में छिपा जीवन ||
तभी तो
डाल रहा हूँ !
अपनी किरणें !
ताकि दिख सके
रजत-चमक
इस जल-जीवन की ||
क्यों कि ?
चारों ओर
चकाचौंध ही चकाचौंध है !
जिसका परिणाम यही है कि
मानव भी अब………
चकाचौंध सी रोशनी को ही
देख पाता है ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”