जल तरंग
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – अर्क अबोध बालक // अरुण अतृप्त
रूहानी रंग प्रतिबिम्ब से
हु -ब -हु मिले
गुनगुनाने लगा मन बज उठी
जल तरंग अन्जाने में
सजन का चेहरा हान्थों में लिए
शरमाई गौरी कल्पना में खो कर
प्रकृति ने उकेरे फिर कई
चित्र व्योम भर गया
फिर सतरंगी भावों में
अल्हाद की अल्ल्हड़ता
न भूली गौरी खिलखिला कर
बिखेरे कई राग ख्वाबों में
रूहानी रंग प्रतिबिम्ब से
हु -ब -हु मिले
गुनगुनाने लगा मन बज उठी
जल तरंग अन्जाने में
कान्हा की बाँसुरी
राधा को मोह ने लगी
पनघट पर गोपियाँ सपनों में
खोने लगी
कामकाज छोड् दैय
रास रचाने को मनमोहक
मोहना किसना मोरा सोहना
रार मचाने लगा
सबको सताने लगा
रूहानी रंग प्रतिबिम्ब से
हु -ब -हु मिले
गुनगुनाने लगा मन बज उठी
जल तरंग अन्जाने में