जल को व्यर्थ बहायें क्यों!
आओ हाँथ बढ़ा कर हम सब,
जल को एकत्रित कर लें।
खेत और खलिहान की भावी
पीढ़ी को चित्रित कर लें।
मिलें भरे घट, जल-असुवन से,
सलिला कहीं मिले निष्ठुर।
खत्म हुआ दिखता पानी है,
फसल कुटंब सब चिंतातुर।
अंजुलि-अंजुलि सिमटा लें हम,
जल को व्यर्थ बहायें क्यों!
मुँह तकता भविष्य अपना है,
फिर संघर्ष बढ़ायें क्यों।
पानी जीवन-संबंधों का,
रहता है अनमोल सदा।
शुष्क कंठ या तरल धरा बिन,
विश्व भी हो बिन-बोल सदा।
अद्भुत संचय जल का करके,
अपना कल सज्जित कर लें
आओ पुराने ढंग बदलें औ
सपने नव-निर्मित कर लें।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ