जल का मोल नहीं पहचान रहा
एक प्यासा बिन पानी के, एक नाली में पानी बहा रहा
एक बूंद बूंद को तरस रहा, एक टैंक से नहा रहा
एक टैंक से आंगन धोता दो, टंकी से गाड़ी
घंटे भर जब नल चलता है, बनती उनकी दाढ़ी
बिना काम के क्यों बंदे, नाली में पानी बहा रहा
बार-बार फ्रेश होता है, चाहे जब फ्लैश चलाता है
आते जाते बाथरूम में, चाहे जब घुस जाता है
नहीं है कोई नियम, क्यों मोल नहीं पहचान रहा
बूंद बूंद में जीवन है, आधी आबादी प्यासी है
सूख रहे जल स्रोत धरा पर, क्यों बना तू सत्यानाशी है
क्यों उदासीन है जीवन से, जो जीवन को यूं ढोल रहा
कर रहा प्रदूषित जल स्रोतों को
क्यों आगे की नहीं सोच रहा???
आने वाली पीढ़ी को, क्यों प्यासा ही छोड़ रहा???
सुरेश कुमार चतुर्वेदी