जल्दी
जहां भी देखो
हर कोई जल्दी में है
ज़िंदगी जी रहे हम
या ज़िंदगी हमको
ढो रही है
कोई नहीं समझ पाता
ये बस चल रही है
जी पा रहा कोई
बचपन भी नहीं
दो साल से झेलो
पढ़ाई के बोझ को
हो जाए पढ़ाई पूरी
नौकरी की चिंता है
नौकरी भी मिल जाए
अब है बच्चों की चिंता
है जीवन व्यस्त इतना
कब रिटायरमेंट आ गई
पता भी न चला
शादी बच्चों की अब
कराकर ही होगा भला
आ गया अब तो बुढ़ापा
जीवन जीया ही नहीं
कब आयेगी मौत अब
इसकी चिंता हो रही
सारी उम्र जल्दी में रहे
ज़िंदगी को जीया ही नहीं
लगता है मौत भी
अब जल्दी में है
साथ ले जाकर ही
मानेगी अब वो भी।