जालियांवाला बाग पर कविता
आज रोती है धरा
गगन पड़ा उदास है
जालियांवाला बाग में बिछी असंख्य लाश है
बारूद के कपड़े पहन
प्रतिशोध है लेना मुझे
हिमवान मंदिर पूछता
शोणित कहां देना मुझे
बोला क्षितिज उत्साह से
मैं धूप का फैलाव हूं
मैं वह धनुष की डोर हूं
मैं धधकता सा आज हूं
आज ही मारे गए थे
निहत्थे सैनिक वहां
मुस्कुराते फूल तू भी
जान मिट्टी की व्यथा _
आज भी जीवित यहां है !क्रूर डायर की कथा
आज भी जीवित यहां है! दग्ध मानव की व्यथा
छलक आई है पलक यह सोचती
कौन भाई, कौन साईं गोलियां खा- खा मरा।