जला जो न दीपक हवा क्या करे।
गज़ल
122……122……122……12
जला जो न दीपक हवा क्या करे।
जो किस्मत में लिक्खा खुदा क्या करे।
मुकर्रर सजा है उसे मौत की,
अदालत तेरी फैसला क्या करे।
है अपनों से लड़कर के क्या फायदा,
मेरा दिल बेचारा बता क्या करे।
जो बीमार ए गम इश्क में है मिला,
दुआ कर सके कुछ दवा क्या करे।
मुहब्बत रुकी दूरियों से कहां,
अगर दिल मिला फासला क्या करे।
निडर लोग मरने से डरते कहां,
जो डरपोक है सामना क्या करे।
करो प्यार कितना भी जी भर उसे,
जो प्रेमी नहीं सिलसिला क्या करे।
……..✍️ प्रेमी