जलन/ पृथ्वीराज चौहान
कुछ लोग मुझसे इस कदर जलते हैं,
साथ अगर मैं उनके चलूं,
तो वो फासला लेकर चलते हैं,
मैंने हमेशा अपना समझा है,
कभी जिनको खुद से कम ना समझा है,
उन्ही लोगों ने न जाने क्यूं,
मुझे अपना दुश्मन समझा है,
मेरी वाहवाही सुनकर,
बेचारों का जी जलता,
पर कोई जोर नहीं चलता है,
मन में उनके बस वहम पलता है,
जहां भी मेरी कोई पहचान है,
वो वहां मेरी कोशिश-ए-तोहिन करते है,
पर यह मैं कैसे जानूं,
वो हर बार क्यों खुद को विफल करते हैं,
मेरी तो बस आदत सी है,
जहां भी जाता हूं-
अपनापन छोड़ आता हूं,
जो भी मिलता है राह-ए-हमसफर,
बस उसका बन जाता हूं,
पर कुछ है ऐसे भी,
जिनके दिल में कांटा-
बनकर चुभ जाता हूं,
क्योंकि मैं झूठ नहीं कह पाता हूं,
क्या जानूं मैं
तकलीफ उनको क्या हैे,
जो चौहान की पहचान मिटाना चाहते हैं,
पर नादान है वो
जो बेमतलब मुझे झुकाना चाहते हैं,
उनको नहीं खबर चौहान के दिल की गहराइयों
की,
यह मोहब्बत से भरा है
कोई जगह नहीं यहां रूसवाइयों की
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पृथ्वीराज चौहान
जानकीदासवाला
8003031152