जलने दो
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अब जलने दो
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(आधार छंद- वातायमा, मापनीयुक्त मात्रिक, 16 मात्रा , समांत-अलने , पदांत- दो ।
मापनी- गागाल लगागा गागागा
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लो सूर्य ढला तो ढलने दो ।
कुछ दीप दरों पर जलने दो ।।1
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हिम से मन में तुम गलो नहीं ।
यह वक्त बुरा है टलने दो ।।2
०
उम्मीद कभी भी छोड़ो मत।
ये बहरुपिये हैं छलने दो ।।३
०
जब नींद तुम्हें गहरी आये ।
तो स्वप्न दृगों में पलने दो ।।4
०
विश्वास न टूटे अंतस का ।
करपृष्ठ मलें वे मलने दो ।।5
०
है मौन बड़ा ही ताकतवर ।
कुछ शब्द खलें तो खलने दो।।6
०
यदि ज्योति बुझे बदलो बाती।
तम को दुनियाँ से चलने दो ।।7
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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