जलती हूं दीपक सी
जलती हूं दीपक सी
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जलती हूं दीपक सी मैं,
रोशन करती सबका जीवन।
जलती हूं मैं पल-पल इसलिए,
जगत को कर दूं मैं रोशन ।।
प्रेम करो तो दिया बाती सा,
जो छोड़े न एक दूजे का साथ।
घर हो या मंदिर,शिवालय,
पूजा में दीपक होता सबके हाथ।।
तिमिर को दूर करके,
जलता है अविराम।
उजियारा चहूं और फैलाता।
हर रात चुनौती,तम को देकर,
अकेला खुद प्राण,पण से जूझता।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,