जलती दीवानगी
हे रब हो जाए कोई रचना, मिट् जाये हम दीवाने।
बंद दिलों को जला रहे हैं, तड़पन में हम परवाने।।
जलने से मिटना अच्छा है, प्रेम जन्म की हसरत से।
विष का प्याला एक बहुत है, सौ भरे कटोरे शरबत से।।
काली आंखें, भीगी पलकें, कुछ इंगित करती रही।
मोती से दांतों की मुस्कान, बिजली सी पड़ती रही।।
बिखरा करके केशुओं को, छाया हमें आती रही।
अँधेरे में कदम उठे तो, बिदिंया चमकती रही।।
वह प्यार- दीवानी बन बैठी, कुछ ऐसा हमने जान लिया।
रच दिया रब ने इस मूरत को, नैनों में उसको तार लिया।।
इठलाती तितली की झलक को, पाने को दीवाने बने।
समय की घड़ियां उल्टी हो गई, कोमल दिल घबराने लगे।।
दीवानो के बढ़ते कदम से, मंजिल कोसो दूर हुई।
सईयाद के पड़ गई हाथों में, जीवन से मजबूर हुई।।
हम रहे ढूंढते दर – दर पे, सईयाद का कोई ठिकाना नहीं।
तड़प रही बुलबुल भी होगी, उसको रब तड़पाना नहीं।।
इधर है तड़पन उधर दीवानी, झुलस रहे हैं दौऊ ज्वाला में।
रब मिट जाए दीवानगी उनकी, दोनो बंधे प्रेम की माला में।।